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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी प्रथम प्रश्नपत्र - हिन्दी काव्य का इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2677
आईएसबीएन :0

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हिन्दी काव्य का इतिहास

अध्याय - 6

भक्तिकाल की पृष्ठभूमि, प्रवृत्तियाँ, प्रमुख एवं गौण कवि तथा उनका काव्य

 

प्रश्न- हिन्दी साहित्य की भक्तिकालीन परिस्थितियों की विवेचना कीजिए।

अथवा
भक्तिकाल की राजनैतिक सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिस्थितियों का विश्लेषण कीजिए।

उत्तर -

हिन्दी साहित्य के इतिहास में प्रायः 1350 से 1650 ई. तक का समय भक्तिकाल कहलाता है। इस काल में प्रायः भक्ति प्रधान रचनाओं की प्रधानता रही। परन्तु इसका यह अर्थ भी नहीं है कि अन्य विषयों से सम्बन्धित इस काल में कुछ भी नहीं लिखा गया। इस युग के भक्ति विषयक धाराओं का अध्ययन करने से पूर्व तत्कालीन राजनैतिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, सामाजिक आदि परिस्थितियों का विश्लेषण करना भी आवश्यक हो जाता है।

(1) राजनैतिक परिस्थितियाँ - राजनैतिक दृष्टियों से यह युग सर्वाधिक अशान्तिमय तथा संघर्ष का युग था। मुहम्मद गौरी के विजित प्रदेशों पर तुर्कों की सल्तनत स्थापित हो गयी थी। बलबन, अलाउद्दीन आदि सुल्तान और उनके सरदार साम्राज्य विस्तार कर चुके थे। अलाउद्दीन खिलजी और मुहम्मद तुगलक ने केन्द्रीय शासन सुदृढ़ बना लिया था, पर उनकी आँख मूंदते ही सब कुछ चौपट हो गया था। 14वीं व 15वीं शताब्दी तक बहुत से क्षेत्रीय राज्य उठ खडेक हुए खिलजी 1295 में सिंहासनारूढ़ हुआ था। उसने मालवा, महाराष्ट्र, गुजरात, रणथम्भौर, चित्तौड़, सिवाला, जालौर आदि प्रदेशों पर अधिकार कर लिया था। लेकिन अलाउद्दीन के मरते ही दिल्ली का राज्य कमजोर पड़ गया। मेवाड़ में हमीर, सिसोदिया स्वतंत्र हो गया। मदुरा और बंगाल के सूबेदार स्वतंत्र सुल्तान बन बैठे थे। दक्षिण में बहमनी सल्तनत स्थापित हो गयी थी। कश्मीर में शाहमीर ने अपने आपको स्वतंत्र घोषित कर दिया था, फिरोज तुगलक ने बगावत को दबाने की कोशिश की थी, किन्तु उसके उत्तराधिकारी निकम्मे निकले। परिणामतः राज्य की सम्पूर्ण शक्ति प्रांतीय शासकों के हाथों में चली गयी।

पन्द्रहवीं शताब्दी तक प्रांतीय शासक उभर आये थे। महाराणा हाड़ा, चूड़ा और कुंभा के शासन काल में मेवाड़ काफी शक्तिशाली हो गया था। मालवा, गुजरात, बंगाल, जौनपुर, कश्मीर में भी स्वतंत्र रियासतें कायम हो गयी थीं। तिरहुत में कामेश्वर ब्राह्मण ने हिन्दू राज्य स्थापित कर लिया था। बुन्देलखण्ड में गहड़वाला वंशजन, बुंदेल सरदार राज्य करने लगे थे। उड़ीसा में सूर्यवंशी कविलेंदु ने स्वतंत्र सत्ता स्थापित कर ली थी। 15वीं शताब्दी के मध्य पठानों ने दिल्ली ले ली थी। पर वे दिल्ली में साम्राज्य स्थापित नहीं कर सके। 16वीं शताब्दी के मध्य जब बाबर ने आक्रमण किया, तब सभी स्वतंत्र राज्य थे। 1526 में पानीपत के मैदान में इब्राहीम लोधी को पराजित किया और फिर राणा सांगा को हराया। पठान शासक शेरशाह सूरी ने हुमायु को पराजित किया। शेरशाह सूरी के उत्तराधिकारी नाकाबिल निकले। मुसलमानों का नेतृत्व जब अकबर ने संभाला तो हेमचंद के नेतृत्व में पठानों ने अकबर का जमकर मुकाबला किया। लेकिन वे पराजित हुए। मेवाड़ के राणा प्रताप ने अकबर का मुकाबला करने के उपरांत अकबर की आधीनता स्वीकार कर ली। शाहजहाँ के शासनकाल में बुंदेलखण्ड ने चंपतराय व महाराष्ट्र में शिवाजी ने स्वतन्त्रता की लौ जगाए रखी। इस काल में कट्टर मुसलमानों ने हिन्दूओं पर जबर्दस्त जुल्म ढाए। अल्तमश ने आरामशाह का कल किया। रजिया और नसरुद्दीन ने कई भाइयों को खोकर राज्य हासिल किया। रजिया और उसके प्रेमी का भी वध किया गया। अलाउद्दीन खिलजी ने अपने चाचा और पिता मुहम्मद तुगलक की हत्या कर राज्य प्राप्त किया। अलाउद्दीन की मलिक काफूर ने हत्या की। सिकन्दर लोदी ने अपने भाई की हत्या की। शाहजादा खुर्रम ने अपने कुल के बहुत से लोगों की हत्या करवाई। अकबर, जहाँगीर और शहजहाँ ही केवल ऐसे शासक हैं, जो कला प्रेमी रहे हैं वरना साम्राज्य ही युद्दों की मार काट का रहा है।

(2) सामाजिक परिस्थिति - चौदहवीं-पन्द्रहवीं शताब्दी में हिन्दू-मुसलमानों में जाति-पाति के कड़े बन्धन थे। एक ही परिवार में कुछ मुसलमान बन जाते थे और कुछ हिन्दू रह जाते थे। उस समय हिन्दू-मुसलमानों में विवाह सम्बन्धों के भी प्रमाण खोजे जा सकते हैं। कश्मीर के सुल्तान शाह मीर की लड़कियों का विवाह हिन्दू सामंतों के साथ हुआ था। जाति-पाँति के बंधन जरूर सख्त थे पर उनके विरुद्ध आवाज भी उठ रही थी। कबीर का उदाहरण इस संदर्भ में दिया जा सकता है। शेरशाह ने जमींदारी प्रथा का उम्मूलन कर दिया था पर मुगलों ने इस प्रथा को जारी रखा था। बादशाह और जागीरदार भोग-विलास में जीवन व्यतीत करते थे। पर शाहजहाँ जैसे उदारवादी शासक भी थे जिन्होंने 1630-31 में गुजरात में पड़े अकाल के दौरान मुफ्त आनाज बंटवाया था। सभी मुसलमान तलवार के जोर पर धर्म फैलाने के पक्ष में नहीं थे। अगर फिरोज तुगलक, सिकंदर बुतारीकन और अहमद शाह जैसे शासक तलवार के बल पर धर्म फैलाने के पक्ष में थे तो शेरशाह जैसे उदार शासक भी थे। कुछ ऐसे भी शासक थे हिन्दू लड़कियों से विवाह तो कर लेते थे पर अपना धर्म बचाए रखते थे। शायद इसी कारण से तत्कालीन समाज में जाति-पाति की कट्टरता बढ़ी थी। विलासी मुस्लिम शासकों से बचने के लिए बाल विवाह और पर्दा प्रथा जन्मी।

(3) धार्मिक परिस्थितियाँ - मुस्लिम साम्राज्य के साथ ही तत्कालीन समाज में सूफी धर्म का उदय हुआ। बुद्ध के बाद बौद्ध धर्म हीनयान व महायान दो भागों में विभाजित हो गया था। हीनयान में धार्मिक जटिलता थी इसलिए उसमें समाज के प्रति अधिक आस्था नहीं रही। महायान के सिद्धान्त के स्थान पर व्यवहार पक्ष का प्राधान्य था। उसमें आचार संबंधी पवित्रता पर अधिक बल दिया गया। उधर, शंकर और कुमारिल भट्ट ने बौद्ध धर्म पर तीखे प्रहार किये। सभ्य जनतर ने शंकर के उपदेशों को ग्रहण किया जबकि महायान संप्रदाय ने जनता के जंतर-मंतर, चमत्कार में वशीभूत किया। इसी कारण महायान मंत्रयान कहलाने लगा। इसके अतिरिक्त समाज में वाममार्ग भी था जिसमें स्त्रियों को वश में करने के लिए अनेक तंत्र-मंत्रों का प्रयोग किया जाता था। मंत्रयान में वाममार्ग की मद्य, माँस, मैथुन, मुद्रा आदि अनेक मुद्राओं को अपना लिया था। मंत्रयान से ही वज्रयान निकला और चौरासी सिद्ध दीक्षित हुए। नाथ सम्प्रदाय सिद्धों का बढ़ा हुआ परिष्कृत रूप है। सिद्ध और नाथ वर्ण व्यवस्था में विश्वास नहीं करते थे। कर्मकाण्ड में भी उनकी आस्था नहीं थी। मोक्ष के लिए गुरु का महत्व था ऐसे ईश्वर के पूजक थे जो निरंकार हैं और घट घट में व्यापक हैं। सिद्धों और नाथों की मुख्य रूढ़ियाँ ही संत मत की धार्मिक पृष्ठभूमि बनी। मुसलमानों के आक्रमण से पूर्व सूफियों ने धार्मिक पैठ जमा ली थी और कुछ सम्प्रदाय भी खड़े कर लिए थे। इन्होंने भारतीय अद्वैतवाद की अपने ढंग से व्याख्या की प्रेम स्वरूप निराकार ईश्वर का प्रचार किया।

(4) साहित्यिक परिस्थितियाँ - इस धार्मिक संघर्ष के युग में रचनाकारों ने गद्य के स्थान पर पद्य को अपनाया। सिद्धान्त प्रतिपादन और भक्ति प्रचार की भावना उस समय समाज में थी। कबीर, सूर, तुलसी और जायसी सभी ने यही किया। मुगलों ने राजकाज की भाषा फारसी स्वीकार कर ली थी। परिणामतः फारसी में अनेक ग्रंथ लिखे गये। इसमें अनेक संस्कृत ग्रंथों का अनुवाद भी हुआ। शेरशाह सूरी व अन्य प्रादेशिक मुस्लिम शासकों ने हिन्दी को भी प्रोत्साहन दिया। पर जितना सम्मान फारसी व संस्कृत को मिला, उतना हिन्दी को नहीं प्राप्त हुआ। बादशाह व राजाओं के आश्रित कवियों ने शृंगार, नीति और रीति आदि के सुन्दर मुक्तक लिखे। प्रबन्ध रचनाएँ भी लिखी गयी।

(5) सांस्कृतिक परिस्थितियाँ - इस काल में पुराणों में व्यक्त समन्वयात्मक प्रवृत्ति को पुनर्जागृत करने का प्रयास किया गया। मूर्ति पूजा, तीर्थयात्रा, धर्मशास्त्रों का सम्मान, कर्मफल में विश्वास, अवतारवाद आदि पौराणिक धर्म की प्रमुख विशेषताएँ हैं, वे सब सगुण भक्ति में देखी जा सकती है। मध्यकालीन धर्मसाधना में सभी धर्म साधनाएं किसी न किसी रूप में उपलब्ध हैं। उस समय योग का प्रभाव इतना अधिक था कि भक्ति और कर्म के साथ भी योग शब्द जुड़ा। राम, कृष्ण, शिव, दुर्गा आदि मे समन्वय लाने का प्रयास किया गया।

निष्कर्षत - भक्तिकालीन परिस्थितियों में जो साहित्य लिखा गया, वह अपनी परिस्थियों का पूर्ण प्रतिनिधित्व करता है। जाति-पांति का विरोध यदि कबीर के काव्य में मिलता है तो प्रेम का सच्चा स्वरूप सूफी काव्य साधना में राम और कृष्ण के चरित्र का वर्णन सूर और दोनों ही करते हैं। ज्ञान और भक्ति में भेद नहीं है, यह तुलसी कहते हैं। इस प्रकार भक्तिकाल में अपने युग का सच्चा प्रतिबिंब देखा जा सकता है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- इतिहास क्या है? इतिहास की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी साहित्य का आरम्भ आप कब से मानते हैं और क्यों?
  3. प्रश्न- इतिहास दर्शन और साहित्येतिहास का संक्षेप में विश्लेषण कीजिए।
  4. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के महत्व की समीक्षा कीजिए।
  5. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के महत्व पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  6. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के सामान्य सिद्धान्त का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  7. प्रश्न- साहित्य के इतिहास दर्शन पर भारतीय एवं पाश्चात्य दृष्टिकोण का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का विश्लेषण कीजिए।
  9. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का संक्षेप में परिचय देते हुए आचार्य शुक्ल के इतिहास लेखन में योगदान की समीक्षा कीजिए।
  10. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन के आधार पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।
  11. प्रश्न- इतिहास लेखन की समस्याओं के परिप्रेक्ष्य में हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की समस्या का वर्णन कीजिए।
  12. प्रश्न- हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की पद्धतियों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  13. प्रश्न- सर जार्ज ग्रियर्सन के साहित्य के इतिहास लेखन पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
  14. प्रश्न- नागरी प्रचारिणी सभा काशी द्वारा 16 खंडों में प्रकाशित हिन्दी साहित्य के वृहत इतिहास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  15. प्रश्न- हिन्दी भाषा और साहित्य के प्रारम्भिक तिथि की समस्या पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- साहित्यकारों के चयन एवं उनके जीवन वृत्त की समस्या का इतिहास लेखन पर पड़ने वाले प्रभाव का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  17. प्रश्न- हिन्दी साहित्येतिहास काल विभाजन एवं नामकरण की समस्या का वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास का काल विभाजन आप किस आधार पर करेंगे? आचार्य शुक्ल ने हिन्दी साहित्य के इतिहास का जो विभाजन किया है क्या आप उससे सहमत हैं? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
  19. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास में काल सीमा सम्बन्धी मतभेदों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  20. प्रश्न- काल विभाजन की उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  21. प्रश्न- काल विभाजन की प्रचलित पद्धतियों को संक्षेप में लिखिए।
  22. प्रश्न- रासो काव्य परम्परा में पृथ्वीराज रासो का स्थान निर्धारित कीजिए।
  23. प्रश्न- रासो शब्द की व्युत्पत्ति बताते हुए रासो काव्य परम्परा की विवेचना कीजिए।
  24. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए - (1) परमाल रासो (3) बीसलदेव रासो (2) खुमान रासो (4) पृथ्वीराज रासो
  25. प्रश्न- रासो ग्रन्थ की प्रामाणिकता पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  26. प्रश्न- विद्यापति भक्त कवि है या शृंगारी? पक्ष अथवा विपक्ष में तर्क दीजिए।
  27. प्रश्न- "विद्यापति हिन्दी परम्परा के कवि है, किसी अन्य भाषा के नहीं।' इस कथन की पुष्टि करते हुए उनकी काव्य भाषा का विश्लेषण कीजिए।
  28. प्रश्न- विद्यापति का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  29. प्रश्न- लोक गायक जगनिक पर प्रकाश डालिए।
  30. प्रश्न- अमीर खुसरो के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  31. प्रश्न- अमीर खुसरो की कविताओं में व्यक्त राष्ट्र-प्रेम की भावना लोक तत्व और काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
  32. प्रश्न- चंदबरदायी का जीवन परिचय लिखिए।
  33. प्रश्न- अमीर खुसरो का संक्षित परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं एवं पहेलियों का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
  34. प्रश्न- अमीर खुसरो सूफी संत थे। इस आधार पर उनके व्यक्तित्व के विषय में आप क्या जानते हैं?
  35. प्रश्न- अमीर खुसरो के काल में भाषा का क्या स्वरूप था?
  36. प्रश्न- विद्यापति की भक्ति भावना का विवेचन कीजिए।
  37. प्रश्न- हिन्दी साहित्य की भक्तिकालीन परिस्थितियों की विवेचना कीजिए।
  38. प्रश्न- भक्ति आन्दोलन के उदय के कारणों की समीक्षा कीजिए।
  39. प्रश्न- भक्तिकाल को हिन्दी साहित्य का स्वर्णयुग क्यों कहते हैं? सकारण उत्तर दीजिए।
  40. प्रश्न- सन्त काव्य परम्परा में कबीर के योगदान को स्पष्ट कीजिए।
  41. प्रश्न- मध्यकालीन हिन्दी सन्त काव्य परम्परा का उल्लेख करते हुए प्रमुख सन्तों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  42. प्रश्न- हिन्दी में सूफी प्रेमाख्यानक परम्परा का उल्लेख करते हुए उसमें मलिक मुहम्मद जायसी के पद्मावत का स्थान निरूपित कीजिए।
  43. प्रश्न- कबीर के रहस्यवाद की समीक्षात्मक आलोचना कीजिए।
  44. प्रश्न- महाकवि सूरदास के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की समीक्षा कीजिए।
  45. प्रश्न- भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ बताइये।
  46. प्रश्न- भक्तिकाल में उच्चकोटि के काव्य रचना पर प्रकाश डालिए।
  47. प्रश्न- 'भक्तिकाल स्वर्णयुग है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
  48. प्रश्न- जायसी की रचनाओं का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  49. प्रश्न- सूफी काव्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  50. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए -
  51. प्रश्न- तुलसीदास कृत रामचरितमानस पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  52. प्रश्न- गोस्वामी तुलसीदास के जीवन चरित्र एवं रचनाओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- प्रमुख निर्गुण संत कवि और उनके अवदान विवेचना कीजिए।
  54. प्रश्न- कबीर सच्चे माने में समाज सुधारक थे। स्पष्ट कीजिए।
  55. प्रश्न- सगुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? उसकी दो प्रमुख शाखाओं की पारस्परिक समानताओं-असमानताओं की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
  56. प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  57. प्रश्न- हिन्दी की निर्गुण और सगुण काव्यधाराओं की सामान्य विशेषताओं का परिचय देते हुए हिन्दी के भक्ति साहित्य के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  58. प्रश्न- निर्गुण भक्तिकाव्य परम्परा में ज्ञानाश्रयी शाखा के कवियों के काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
  59. प्रश्न- कबीर की भाषा 'पंचमेल खिचड़ी' है। सउदाहरण स्पष्ट कीजिए।
  60. प्रश्न- निर्गुण भक्ति शाखा एवं सगुण भक्ति काव्य का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  61. प्रश्न- रीतिकालीन ऐतिहासिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक पृष्ठभूमि की समीक्षा कीजिए।
  62. प्रश्न- रीतिकालीन कवियों के आचार्यत्व पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
  63. प्रश्न- रीतिकालीन प्रमुख प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिए तथा तत्कालीन परिस्थितियों से उनका सामंजस्य स्थापित कीजिए।
  64. प्रश्न- रीति से अभिप्राय स्पष्ट करते हुए रीतिकाल के नामकरण पर विचार कीजिए।
  65. प्रश्न- रीतिकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों या विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  66. प्रश्न- रीतिकालीन रीतिमुक्त काव्यधारा के प्रमुख कवियों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार दीजिए कि प्रत्येक कवि का वैशिष्ट्य उद्घाटित हो जाये।
  67. प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षिप्त जीवन परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  68. प्रश्न- रीतिबद्ध काव्यधारा और रीतिमुक्त काव्यधारा में भेद स्पष्ट कीजिए।
  69. प्रश्न- रीतिकाल की सामान्य विशेषताएँ बताइये।
  70. प्रश्न- रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ बताइये।
  71. प्रश्न- रीतिकाल के नामकरण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  72. प्रश्न- रीतिकालीन साहित्य के स्रोत को संक्षेप में बताइये।
  73. प्रश्न- रीतिकालीन साहित्यिक ग्रन्थों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  74. प्रश्न- रीतिकाल की सांस्कृतिक परिस्थितियों पर प्रकाश डालिए।
  75. प्रश्न- बिहारी के साहित्यिक व्यक्तित्व की संक्षेप मे विवेचना कीजिए।
  76. प्रश्न- रीतिकालीन आचार्य कुलपति मिश्र के साहित्यिक जीवन का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  77. प्रश्न- रीतिकालीन कवि बोधा के कवित्व पर प्रकाश डालिए।
  78. प्रश्न- रीतिकालीन कवि मतिराम के साहित्यिक जीवन पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- सन्त कवि रज्जब पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  80. प्रश्न- आधुनिककाल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।
  81. प्रश्न- हिन्दी नवजागरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  82. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल का प्रारम्भ कहाँ से माना जाये और क्यों?
  83. प्रश्न- आधुनिक काल के नामकरण पर प्रकाश डालिए।
  84. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों की सोदाहरण विवेचना कीजिए।
  85. प्रश्न- भारतेन्दु युगीन काव्य की भावगत एवं कलागत सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- भारतेन्दु युग की समय सीमा एवं प्रमुख साहित्यकारों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  87. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन काव्य की राजभक्ति पर प्रकाश डालिए।
  88. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन काव्य का संक्षेप में मूल्यांकन कीजिए।
  89. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन गद्यसाहित्य का संक्षेप में मूल्यांकान कीजिए।
  90. प्रश्न- भारतेन्दु युग की विशेषताएँ बताइये।
  91. प्रश्न- द्विवेदी युग का परिचय देते हुए इस युग के हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में योगदान की समीक्षा कीजिए।
  92. प्रश्न- द्विवेदी युगीन काव्य की विशेषताओं का सोदाहरण मूल्यांकन कीजिए।
  93. प्रश्न- द्विवेदी युगीन हिन्दी कविता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
  94. प्रश्न- द्विवेदी युग की छः प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
  95. प्रश्न- द्विवेदीयुगीन भाषा व कलात्मकता पर प्रकाश डालिए।
  96. प्रश्न- छायावाद का अर्थ और स्वरूप परिभाषित कीजिए तथा बताइये कि इसका उद्भव किस परिवेश में हुआ?
  97. प्रश्न- छायावाद के प्रमुख कवि और उनके काव्यों पर प्रकाश डालिए।
  98. प्रश्न- छायावादी काव्य की मूलभूत विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
  99. प्रश्न- छायावादी रहस्यवादी काव्यधारा का संक्षिप्त उल्लेख करते हुए छायावाद के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  100. प्रश्न- छायावादी युगीन काव्य में राष्ट्रीय काव्यधारा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  101. प्रश्न- 'कवि 'कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससे उथल-पुथल मच जायें। स्वच्छन्दतावाद या रोमांटिसिज्म किसे कहते हैं?
  102. प्रश्न- छायावाद के रहस्यानुभूति पर प्रकाश डालिए।
  103. प्रश्न- छायावादी काव्य में अभिव्यक्त नारी सौन्दर्य एवं प्रेम चित्रण पर टिप्पणी कीजिए।
  104. प्रश्न- छायावाद की काव्यगत विशेषताएँ बताइये।
  105. प्रश्न- छायावादी काव्यधारा का क्यों पतन हुआ?
  106. प्रश्न- प्रगतिवाद के अर्थ एवं स्वरूप को स्पष्ट करते हुए प्रगतिवाद के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  107. प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिए।
  108. प्रश्न- प्रयोगवाद के नामकरण एवं स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए इसके उद्भव के कारणों का विश्लेषण कीजिए।
  109. प्रश्न- प्रयोगवाद की परिभाषा देते हुए उसकी साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  110. प्रश्न- 'नयी कविता' की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  111. प्रश्न- समसामयिक कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों का समीक्षात्मक परिचय दीजिए।
  112. प्रश्न- प्रगतिवाद का परिचय दीजिए।
  113. प्रश्न- प्रगतिवाद की पाँच सामान्य विशेषताएँ लिखिए।
  114. प्रश्न- प्रयोगवाद का क्या तात्पर्य है? स्पष्ट कीजिए।
  115. प्रश्न- प्रयोगवाद और नई कविता क्या है?
  116. प्रश्न- 'नई कविता' से क्या तात्पर्य है?
  117. प्रश्न- प्रयोगवाद और नयी कविता के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
  118. प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता तथा उनके कवियों के नाम लिखिए।
  119. प्रश्न- समकालीन कविता का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

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